Friday, 22 February 2019

Dr Sanjeev Juneja Kesh King Brand Sucess Story by Sanjay Sinha (Man Behind Roop Mantra, Dr Ortho, Pet Saffa)


जो थम गए, वो कुछ नहीं
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“मेरी जेब में पांच फूटी कौड़ियां नहीं हैं और मैं पांच लाख का सौदा करने आया हूं।”
1978 में हिंदुस्तान के रुपहले पर्दे पर जब अमिताभ बच्चन मिस्टर आर के गुप्ता से ये कह रहे थे, तब किसी ने नहीं सोचा था कि बिना पांच फूटी कौड़ियों के कोई पांच लाख का सौदा करने की सोच भी सकता है।
पर कोई था जो ऐसा सोच सकता था। तब नहीं, अमिताभ बच्चन के ऐसा कहने के बीस साल बाद।
जी हां, ठीक बीस साल बाद।
आइए, आज संजय सिन्हा के साथ आप फिल्मी फंतासी-सी कहानी के एक ऐसे संसार में चलिए, जहां हीरो कुछ कहता नहीं, पर उसके किए को दुनिया कहती फिर रही है।
साल 1999, शहर का नाम अंबाला।
23 साल का एक नौजवान, जिसके सपनों ने जगना शुरू ही किया था कि उसकी दुनिया सो गई।
उसके पिता इस संसार को अचानक अलविदा कह गए।
बहुत मनहूस सुबह थी वो।
चंडीगढ़ के अपने बंगले में उस तारीख को याद करते हुए संजीव जुनेजा ने मुंह घुमा कर अपनी आंखें पोछीं और धीरे से कहा, “संजय जी, उस दिन मेरी दुनिया खत्म हो गई थी। मेरे पिता इस संसार से चले गए थे। यूं ही एक सुबह दिल की धड़कन रुक गई।
“मेरे पिता अंबाला में आयुर्वेदिक डॉक्टर थे। घर में सब कुछ वही थे। मेरा करीयर तब शुरू नहीं हुआ था। अभी सोचना शुरू ही किया था कि क्या करूंगा जीवन में। अचानक एक सुबह घर की खुशियों ने मुंह मोड़ लिया। मां, मैं और मेरी छोटी बहन। हम क्या करेंगे? कहां जाएंगे? घर कैसे चलेगा? एक हज़ार सवालों ने पूरे घर को जकड़ लिया।
“मेरे पास कुछ नहीं था। घर में ही पिता का एक कमरे का अपना दवाखाना था। पिता की मृत्यु के बाद मेरे सिर पर पगड़ी बांध दी गई कि घर का बेटा ही घर को देखेगा।
“मैं पिता के उस कमरे में गया, जहां बहुत-सी औषधियां पड़ीं थीं। मैंने पिता को काम करते देखा था। वो रोज़ कुछ न कुछ प्रयोग करते थे। नया करते थे। मुझे नहीं पता था कि मैं क्या करूंगा, पर इतना तय कर चुका था कि वो नहीं करूंगा जो दुनिया करती है। कुछ अलग करूंगा। जीवन का व्याकरण खुद लिखने की ठान चुका था। पर रास्ता नहीं सूझ रहा था।”


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